बक्सर। एक 56 वर्षीय शख्स घटना के दौरान नाबालिग था , लेकिन इसके बाद भी उसने 33 साल तक मुकदमे का सामना किया। 7 सितंबर 1979 को बक्सर के मुन्ना सिंह पर उनके पिता सहित 9 लोगों पर धारा 148 और 307 का मामला दर्ज किया गया था। इस दौरान 2012 में यह साबित हुआ कि वह घटना के समय नाबालिग थे। अब 11 अक्टूबर को गवाहों की कमी के कारण सिंह को बरी किया गया।
एक खबर के अनुसार बक्सर में किशोर न्याय बोर्ड के सहायक अभियोजन अधिकारी एके पांडे ने कहा कि किशोर बोर्ड ने मामले की अच्छी तरह से जांच की। चूंकि मुन्ना सिंह के खिलाफ कोई गवाह नहीं था, इसलिए उन्हें आरोपों से बरी कर दिया गया। सिंह के वकील राकेश कुमार मिश्रा के मुताबिक उनका मुवक्किल केवल 13 वर्ष का था और घटना के समय आठवीं कक्षा का छात्र था। लेकिन 2012 तक उसे नाबालिग नहीं माना गया था।
बक्सर की एसीजेएम द्वितीय की अदालत में मुकदमे के दौरान मिश्रा ने मुन्ना सिंह से उनकी उम्र पूछी। जब उन्होंने कहा कि वह उस समय 46 वर्ष के हैं, तो ये साफ हो गया कि जब मामला दर्ज किया गया था तब वह नाबालिग थे। फिर नवंबर, 2012 को मामले को बक्सर किशोर न्याय बोर्ड में स्थानांतरित कर दिया गया। मुरार पुलिस थाने के चैगाई गांव के निवासी और किसान मुन्ना सिंह का कहना है कि उन्होंने लगभग एक महीने जेल में बिताए थे। इस मामले में एक आरोपी बनने के बाद उन्होंने काफी मानसिक प्रताड़ना झेली और अदालत का चक्कर लगाया।
मुन्ना सिंह के पिता समेत मामले के पांच आरोपियों की सुनवाई के दौरान मौत हो गई। बक्सर कोर्ट ने कुछ साल पहले इस मामले में 2 लोगों को दोषी करार दिया था और दो अन्य को बरी कर दिया था। जबकि मुन्ना सिंह के वकील ने कहा कि किशोर बोर्ड के फैसले में देरी का मुख्य कारण पिछले 10 वर्षों में बोर्ड का बक्सर से पटना, आरा और फिर बक्सर में स्थानांतरित होना था। वकील के मुताबिक मामले में मुन्ना सिंह को केवल इसलिए फंसाया गया कि उसे मौके पर देखा गया था। जबकि वह केवल जिज्ञासावश वहां गए थे।