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पिता को मुखाग्नि देकर बेटी ने पेश की मिसाल, समाज ने पगड़ी व चादर देकर किया सम्मानित

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हाजीपुर । विश्व को गणतंत्र का प्रथम पाठ पढ़ाने वाली वैशाली की धरती ने समाज को अनूठा संदेश दिया है। इस भूमि पर नारी सशक्तिकरण का एक अद्भुत अध्याय की शुरुआत भी हुई जब जिले के गौरौल की पुत्री ने अपने पिता का अंतिम संस्कार पूरा किया और फिर पूरे विधि विधान के साथ श्राद्ध कर्म को भी संपन्न किया। ग्रामीणों ने पुरानी प्रथा को समाप्त कर पहली बार एक नारी को पगड़ी व चादर देकर सम्मानित किया।
गौरौल प्रखंड के सोन्धो कहरटोली निवासी शिवबालक प्रसाद सिंह की मौत के बाद उनकी इकलौती पुत्री ने उन्हें मुखाग्नि दी। बेटा नहीं होने की वजह से उनकी बेटी अनमोल मोती ने उन्हें मुखाग्नि देने का निर्णय लिया। लेकिन, जब बात श्राद्ध कर्म की आई तो इसमें कई बाधाएं थीं। धार्मिक रूप से ही आत्मा को परमात्मा से मिलाने के लिए पुत्र अथवा किसी पुरुष संबंधी के द्वारा ही श्राद्ध कर्म किया जा सकता था। साथ ही पुरुष के द्वारा ही श्राद्ध कर्म की सदियों से परंपरा भी रही है।
दुविधा की स्थिति को देखते हुए जब इसके विरुद्ध अनमोल मोती ने अपने पिता का श्राद्ध कर्म करने की बात कही। थोड़ा बहुत शुरुआती विरोध के बाद बदलती सोच के साथ ग्रामीणों और संबंधियों ने भरपूर साथ दिया। जिसके बाद श्राद्ध कर ग्रामीण नारी सशक्तिकरण की एक अद्भुत मिसाल बन गए। अनमोल मोती ने लंबे समय तक चलने वाले श्राद्ध कर्म को पूरे विधि विधान के साथ किया जिसके साक्षी तमाम लोग बने। इन सबके बीच एक अनोखी बात यह भी सामने आई कि समाज ने भी अनमोल मोती के सिर पर पगड़ी और चादर डालकर वही सम्मान दिया जो पुरुषों को दिया जाता है।
वैशाली जिले के गौरौल प्रखंड के सोन्धो कहरटोली निवासी शिवबालक प्रसाद सिंह की मौत के बाद उनकी इकलौती पुत्री अनमोल मोती ने उन्हें मुखाग्नि दी, क्योंकी उनको कोई भी पुत्र नहीं था। श्राद्ध कर्म के बाद पगड़ी व चादर का खास महत्व होता है। इसका सामाजिक अर्थ यह होता है कि आपके पिता के चले जाने के बाद हम सभी उनके जगह पर आपको मानते हैं, वही अधिकार देते हैं। इसके साथ ही इस समाज से इस रिश्तेदारी से आपको जोड़ते हैं। एक बेटी के द्वारा अपने पिता का श्राद्ध कर्म करने की चर्चा पूरे इलाके में हो रही है। पुरानी परंपराओं के अनुसार पुत्री के नहीं रहने पर अन्य रिश्तेदार मुखाग्नि देते हैं और श्राद्ध कर्म करते हैं। इसके बदले मृत व्यक्ति की संपत्ति से उन्हें समाज के द्वारा तय संपत्ति दी जाती है। जिससे कहीं ना कहीं बेटियों के अधिकारों का भी हनन होता है।

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