दिल्ली। पिछले कई दिनों से दिल्ली और आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण से हालात बेहद बिगड़ गए हैं! आसमान में धुंध की परत बन गई है! हवा में घातक कणों की भरमार है!लोगों को घरों में भी मास्क लगा कर रहना पड़ रहा है! वायु गुणवत्ता सूचकांक पांच सौ के ऊपर ही बना हुआ है!हालांकि एक सीमा के बाद वायु गुणवत्ता सूचकांक का कोई मतलब इसलिए नहीं रह जाता है क्योंकि चाहे यह ढाई सौ हो या फिर तीन सौ या चार सौ हवा तो जहरीली ही रहेगी याद किया जाना चाहिए दिल्ली में कुछ साल पहले इसी तरह हालात बिगड़ने के बाद स्वास्थ्य आपात काल घोषित करना पड़ा था! इस बार स्थिति उससे भी खराब है! राजधानी की यह हालत देख कर क्या कोई कह सकता है कि प्रदूषण से निपटने के लिए हमारी सरकारें जरा भी गंभीर रही होंगी? ऐसा नहीं कि प्रदूषण के बढ़ते खतरे को लेकर सरकारों के पता नहीं रहा होगा पर समय रहते जो कदम उठाने चाहिए थे लगता है वे नहीं उठाए गए! इसी का खमियाजा आज सब भुगत रहे हैं!
दिल्ली में अभी तक वायु प्रदूषण का बड़ा कारण पड़ोसी राज्यों में जलने वाली पराली के धुएं को बताया जा रहा है! मोटा अनुमान है कि दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली के धुएं की भागीदारी पैंतीस फीसद के आसपास है! इस लिए यह सवाल उठना लाजिमी है कि प्रदूषण के जो बाकी पैंसठ फीसद कारक बने हुए हैं उनसे निपटने के लिए सरकारों ने क्या किया?क्या दिल्ली में उन लाखों वाहनों को सड़कों से हटा दिया गया है जिनकी अवधि पूरी हो चुकी है? प्रति बंध के बावजूद दिवाली पर दिल्ली में पटाखे कैसे चलते रहे? कचरा जलने की घटनाओं में कमी क्यों नहीं आ रही? देखा जाए तो प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए नियमों या निर्देशों की कहीं कोई कमी नहीं है
मसला सिर्फ इन नियमों पर अमल करवाने की इच्छाशक्ति का है!
दिल्ली और इससे सटे शहरों के सरकारी निकायों में तालमेल की भारी कमी तथा वही
नागरिक समुदाय ने भी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी! इसी का नतीजा है कि आज हम जहरीले धुएं में सांस लेने को विवश हैं।