काशीपुर। प्रदेश में मानवाधिकार संरक्षण के कितने भी दावे किये जाये लेकिन हकीकत कुछ और ही हैै। विभिन्न बार सूचना मांगने पर उत्तराखंड मानवाधिकार आयोग ने 2012 से 2018 तक 7 वर्षों की अलग-अलग रिपोर्ट के स्थान पर एक रिपोर्ट सरकार को 20 दिसम्बर 2018 को उत्तराखंड शासन के गृह विभाग को उपलब्ध करा दी लेकिन उसके द्वारा इसे विधानसभा के समक्ष रखने की कार्यवाही उत्तराखंड सूचना आयोग के आदेश पर ही की। आखिकार 2012-2018 व 2019 की वार्षिक रिपोर्ट विधानसभा के जून 2022 के सत्र में पटल पर रख दी गयी। गृह विभाग के अधिकारियों ने 40 माह में जो कार्यवाही नहीं की थी, वह उत्तराखंड सूचना आयोग के विभागीय कार्यवाही के नोटिस के बाद मात्र दो माह में ही पूर्ण कर ली। सूचना आयोग ने गृह विभाग के अधिकारियों की कार्यशैली सुधार के लिये चेतावनी जारी करने के आदेश भी किये हैं।
नदीम उद्दीन ने अपने सूचना प्रार्थना पत्र से उत्तराखंड मानव अधिकार आयोेग की सरकार को प्रस्तुत वार्षिक/विशेष रिपोर्टों, इस पर कार्यवाही तथा उन्हें विधानसभा के समक्ष रखने सम्बन्धी सूचनायें मांगी थी। इसके उत्तर में पहले तो लोक सूचना अधिकारी ने अतिरिक्त शुल्क रू. 260 की मांग की लेकिन जब इस शुल्क का भुगतान प्रेषित कर दिया गया तो आयोग की वार्षिक रिपोर्ट/विशेष रिपोर्ट के सुरक्षा एवं गोपनीयता के दृष्टिगत दिया जाना संभव नहीं है लिखते हुुये उपलब्ध कराने से इंकार कर दिया। इस पर श्री नदीम ने उत्तराखंड सूचना आयोग को द्वितीय अपील की। उत्तराखंड सूचना आयोग के सूचना आयुक्त विपिन चन्द्र की पीठ ने अपील की 11 अप्रैल 2022 को प्रथम सुनवाई की। श्री नदीम के अपील प्रार्थना पत्र के तथ्योें से सहमत होते हुये विपिन चन्द्र ने सूचना उपलब्ध न कराने तथा विधानसभा के समक्ष उत्तराखंड मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट न रखने पर कठोर रूख अपनाया। श्री विपिन ने अपने आदेेश दि0 11-04-2022 में स्पष्ट लिखा कि तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी धीरज कुमार, अनुभाग अधिकारी गृह अनुभाग-5 उत्तराखंड शासन देहरादून एवं वर्तमान लोक सूचना अधिकारी धर्मेन्द्र कुमार द्विवेदी, अनुभाग अधिकारी गृह अनुभाग-5 उत्तराखंड शासन देहरादून द्वारा अपने दायित्वों/कर्तव्योें का निर्वहन सुचारू रूप से नहीं किया है। राज्य मानवाधिकार आयोग की वार्षिक रिपोर्ट/विशेष रिपोर्ट अत्यंत महत्वपूर्ण हैै, क्योेंकि उक्त रिपोर्ट राज्य वासियों के मानवाधिकार से संबंधित है एवं उक्त रिपोर्ट को समय से मंत्रिमंडल के सम्मुख व विधानसभा के पटल पर रखने की जिम्मेदारी प्रशासन की हैै। यदि उक्त दोनों अधिकारियों द्वारा प्रकरण में सुचारू रूप से कार्य करते हुए उत्तराखंड मानव अधिकार आयोग की वार्षिक रिपोर्टध्विशेष रिपोर्ट विधानसभा के समक्ष विचार हेतु रखते तो विचारोपरांत उक्त जानकारी/सूचना अपीलार्थी को प्रेषित की जा सकती थी।