भोपाल । कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी व्रत 17 अक्टूबर सोमवार को रखा जाएगा। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि या व्रत संतान सुख, बच्चे की दीर्धायु और उसके अच्छे भविष्य के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं। अहोई अष्टमी के दिन को अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है। करवा चैथ की तरह ही अहोई अष्टमी का व्रत काफी ज्यादा मुश्किल होता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन जल तक ग्रहण नहीं करती हैं। आकाश में तारों को देखने के बाद ही उपवास को तोड़ा जाता है।
अहोई अष्टमी शुभ मुहूर्त
– अष्टमी तिथि का प्रारम्भ अक्टूबर 17, को सुबह 09 बजकर 29 मिनट से होगा। और अष्टमी तिथि की समाप्ति अक्टूबर 18, को सुबह 11 बजकर 57 मिनट पर होगी। अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त शाम 06 बजकर 14 मिनट से शाम 07बजकर 28 मिनट तक रहेगी जिसकी अवधि 01 घण्टा 14 मिनट रहेगी। तारों को देखने के लिये साँझ का समय शाम 06 बजकर 36 मिनट पर होगा।
अहोई अष्टमी पूजा विधि
अहोई अष्टमी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लेना चाहिए। इसके दिन बाद दिनभर बिना कुछ खाए उपवास का पालन करना चाहिए। इसकी पूजा की तैयारी सूर्यास्त से पहले ही संपन्न की जाती है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले दीवार पर अहोई माता का फोटो लगाया जाता है। अहोई माता का चित्र अष्ट कोष्टक होगा, तो बेहतर रहेगा। उसके बाद लकड़ी की एक चैकी सजाना चाहिए, और माता के चित्र की बायी तरफ पवित्र जल से भरा हुए कलश रखा जाना चाहिए। कलश पर स्वस्तिक का चिह्न बनाकर मोली अवश्य बांध दें। इसके बाद दीपक अगरबत्ती आदि लगाकर माता को पूरी, हलवा तथा पुआ युक्त भोजन किया जाना चाहिए। इस भोजन को वायन भी कहा जाता है। इसके अलावा अनाज जैसे ज्वार अथवा कच्चा भोजन (सीधा) भी मां को पूजा में अर्पित किया जाना चाहिए। इसके बाद परिवार की सबसे बड़ी महिला सभी महिलाओं को इस व्रत की कथा का वाचन करती है। कथा सुनते समय याद रखें कि सभी महिलाएं अपने हाथ में अनाज के सात दाने रख लें। इसके बाद पूजा के अंत में अहोई अष्टमी आरती की जाती है। कुछ समुदायों में चाँदी की अहोई माता बनाई व पूजी जाती है। इसे स्याऊ भी कहते हैं। पूजा के बाद इसे धागे में गूंथ कर गले में माला की तरह पहना जाता है। पूजा सम्पन्न होने के बाद महिलाएं पवित्र कलश में से चंद्रमा अथवा तारों को अघ्र्य देती हैं, और उनके दर्शन के बाद ही अहोई माता का व्रत संपन्न होता है।