
अनिल शर्मा
ठाकुरद्वारा ( मुरादावाद )
नगर में चल रही कृष्ण लीला के दौरान कलाकारों ने श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता का रोमांचक मंचन किया l मंचन देख दर्शको आंखों में आंसू छलक पडे |
रविवार को रामलीला मैदान में चल रही श्री कृष्ण लीला के दौरान मथुरा वृंदावन से आए कलाकारों ने दर्शाया कि भगवान श्री कृष्ण के मित्र सुदामा गरीबी से तंग हाल में अपनी पत्नी के साथ जीवन व्यतीत करते चले आ रहे हैं |यहां तक की एक वक्त का भोजन भी मिलना दुसवार हो गया है । हालत से परेशान सुदामा की पत्नी बार-बार कहती कि आपके मित्र द्वारिकाधीश के राजा हैं |आप श्री कृष्ण भगवान के पास क्यों नहीं जाते वह आपकी हालत देखकर अवश्य ही मदद करेंगे I लेकिन सुदामा अपनी गरीबी को देखकर अपने मित्र कृष्ण के पास नहीं जाना चाहते | पत्नी के बार बार कहने पर कहते कि वह मित्र के घर खाली हाथ कैसे जाऊं ।यह बात सुन पत्नी पड़ोसी से तीन मुट्ठी चावल उधार स्वरूप लेकर उनकी पोटली में बांध कर द्वारिकाधीश के लिए भेजती है। सुदामा नंगे पग फटे हाल वस्त्रों में वयावान जंगलों में होते हुए द्वारिकाधीश पहुंच जाते हैं ।वहां पहुंचकर देखते हैं कि दरवाजे पर द्वारपाल खड़े हैं । सुदामा के फसलों को देखकर द्वारपाल उन्हें अंदर नहीं जाने देते । सुदामा बार-बार द्वारपालों से आग्रह करते हैं कि श्री कृष्ण से कहना कि मित्र गरीब सुदामा मिलने आए हैं । लेकिन द्वारपाल उनकी एक न सुन टालमटोल करते रहते हैं |बार-बार विनती करने के दौरान उन्हें अपने मित्र सुदामा की आवाज आती है । मित्र सुदामा की आवाज सुन वह नंगे पैर दौड़े चले आते हैं और मित्र सुदामा का बुरा हाल देख गले लगा कर रोने लगते है |श्री कृष्णा अपने मित्र को महल में ले जाकर सिंहासन पर बैठा देते हैं |यह देख रुकमणी आश्चर्यचकित हो जाती है | सुदामा के बरात में पैरे रख कर सुदामा के पैरों में लगे कांटों को रोते हुए चुनने लगते हैं | आंखों से निकले आंसूओ से सुदामा के पैर धूल जाते हैं lकृष्ण सुदामा की मित्रता मिलन देख दर्शकों की आंखों में आंसू छलक आते हैं ।पोटली में बंधे चावलों को संकोच के कारण तीन मुट्ठी चावल को भेंट नहीं कर पाते I इस पर श्री कृष्ण सुदामा पास मे बंधी पोटली को उठाकर खोल लेते हैं |श्रीकृष्ण दो मुट्ठी चावल खा लेते हैं I तीसरी मुट्ठी खाने पर रुकमणी रोक देती है |कहती है, हे प्रभु आपने दो लोको का मित्र मित्र सुदामा को राजा बना दिया I यह सुन श्री कृष्ण मंद बंद मुस्काते हैं I अपने मित्र को खुशी के साथ विदा कर देते हैं Iसुदामा अपने गांव वापस लौटते हैं और मन ही मन सोचते हैं कि मित्र ने स्वागत भी किया सम्मान भी दिया । लेकिन उसकी आर्थिक परेशानी देखते हुए भी हल नहीं की पत्नी सुशीला सुशीला के पूछने पर वह किया जवाब देगा | जब वह अपने गांव पहुंचते हैं तो झोपड़ी के स्थान पर महल खडा देख आश्चर्यचकित हो जाते हैं | लोगों से पूछते हैं कि क्या उसकी पत्नी को उन्होंने देखा है ।तब ग्रामीण कहते हैं कि जहां आप खड़े हैं वही आपके घर का दरवाजा है ।पत्नी सुशीला आवाज सुन दौड़ी दौड़ी चली आती है।पत्नी गले लग नए घर में प्रवेश कराती है I और कहती हैं कि मैं पहले ही कहती थी कि आप अपने मित्र के पास अवश्य जाएं वह अवश्य ही मदद करेंगे I कार्यक्रम में रामलीला कमेटी के प्रबंधक अवनीश कुमार शर्मा , अवधेश कुमार, मुकेश कुमार, दिनेश पोठिया, अनुज शर्मा, आदि मौजूद रहे l