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कलाई पर पहनी राखी के जहां गिरेंगे बीज, वहां उग आएंगे फूल और सब्जियां

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नाहन । रक्षा बंधन का पर्व नजदीक है। इसे यादगार बनाने के लिए सिरमौर की महिलाओं ने इस बार कुछ खास तैयारी की है। इस बार हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के स्वयं सहायता समूहों ने ऐसी राखियां तैयार की हैं जो खराब होने के बाद भी बेकार नहीं जाएंगी। भाई-बहन के पवित्र बंधन के इस खास मौके पर स्वयं सहायता समूहों से जुड़ीं महिलाओं ने राखियों में विभिन्न किस्म के बीजों का इस्तेमाल किया है।
राखी पहनने के बाद कलाई से जहां-जहां ये बीज बिखरेंगे, वहां इस पवित्र बंधन के फूल उग आएंगे। बीज पौधे का रूप लेंगे। अगर कलाई पर पहनी राखी के बीज सुरक्षित भी बच जाते हैं तो इन्हें गमले या क्यारियों में फेंककर पौधे तैयार किए जा सकेंगे। फूलों के अलावा सब्जियों के बीज भी राखी में हैं। इन राखियों में गेंदा, सरसों, चौलाई, मेथी, सोयाबीन, लोबिया, धनिया, कद्दू और चना समेत अन्य किस्मों के बीजों का इस्तेमाल किया गया है।
राखी के इस्तेमाल के बाद इसे गमलों में पौधे का रूप दिया जा सकता है। महिलाओं ने कड़ी मेहनत कर इन राखियों को लोकल फॉर वोकल थीम पर तैयार किया है, जो पूरी तरह से ईको फ्रैंडली हैं। उपयोग के बाद इन राखियों का पर्यावरण पर भी विपरीत असर नहीं पड़ेगा यानी महिलाओं ने पर्यावरण को ध्यान में रखकर भी इन राखियों को स्वयं तैयार किया है।
राखियों में बांस, चीड़ की पत्तियां, ऊन और रेशम का किया इस्तेमाल
कालाअंब, मोगीनंद, जंगलाभूड़, थाना कसोगा, भलगों और शंभुवाला आदि क्षेत्रों के स्वयं सहायता समूहों से जुड़ीं महिलाओं ने राखियां तैयार की हैं। नाहन में लगाए स्टॉल पर 20 से 50 रुपये तक की राखियां उपलब्ध हैं।
स्वयं सहायता समूह कालाअंब से जुड़ीं वंदना और थाना कसोगा की रंजीता ने बताया कि रक्षाबंधन के उपलक्ष्य पर ही ये राखियां तैयार की हैं, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए भी मददगार बनेगी। राखियों पर बांस, ऊन, चीड़ की पत्तियां, रेशम का इस्तेमाल किया गया है। साथ ही राखियों में कई किस्म के बीज जोड़कर सुंदरता बढ़ाई गई है।
ई-कॉमर्स साइट्स पर उपलब्ध कराने के प्रयास
ईको फ्रैंडली राखियों में कई बीजों का इस्तेमाल किया गया है। नाहन क्षेत्र के 10 स्वयं सहायता समूहों ने सैकड़ों राखियां तैयार की हैं, जो हाथोंहाथ बिक रही हैं। इसके लिए जिला प्रशासन की ओर से स्टाल उपलब्ध कराया गया है। उत्पादों को ई-कॉमर्स साइट्स पर उपलब्ध करवाने का प्रयास है। – अभिशेख मित्तल, परियोजना अधिकारी, डीआरडीए।

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