सुप्रीम कोर्ट की नसीहत-पत्रकारों को न दें धमकी

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पत्रकारों और विचारों को धमकाने के लिए न हो सरकारी ताकत का इस्तेमाल

दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य को अपनी ताकत का इस्तेमाल किसी राजनीतिक ओपिनियन या जर्नलिस्ट को धमकाने के लिए कभी नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक वर्ग को इसके लिए देश भर में आत्ममंथन करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणी करते हुए एक न्यूज पोर्टल और अन्य के खिलाफ पश्चिम बंगाल में दर्ज केस को खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि देश विभिन्नताओं वाला देश है और यह अपने आप में महान है। इस देश में अलग-अलग मान्यताएं और मत हैं। राजनीतिक मत भी अलग-अलग हैं। यह हमारे लोकतंत्र की पहचान है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य फोर्स का इस्तेमाल कभी भी राजनीतिक या जर्नलिस्ट के ओपिनियन को दबाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। इसका मतलब यह भी नहीं है कि इन्हें कुछ भी बोलने का अवसर मिल गया है, जिससे कि समाज में परेशानी पैदा हो।

सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा कि हम यह भी जोड़ना चाहते हैं कि पत्रकारों की भी जिम्मेदारी है कि वह किसी मामले को कैसे रिपोर्ट करें। खासकर तब जबकि यह ट्विटर का दौर है, ऐसे में उन्हें ज्यादा जिम्मेदार होना चाहिेए। सुप्रीम कोर्ट में पश्चिम बंगाल की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने बताया कि पश्चिम बंगाल सरकार ने इंग्लिश भाषा के एक न्यूज पोर्टल के एडिटर के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने का फैसला किया है। साथ ही यू ट्यूबर के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने का फैसला हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमें संदेह नहीं है कि राजनीतिक वर्ग में एक दूसरे के प्रति नीचा दिखाने वाले बयान हो रहे हैं और उस पर आत्ममंथन की जरूरत है। हमारे देश में विविधता है और वह गर्व का विषय है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले की सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल में दर्ज इस केस की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। 26 जून 2020 को टॉप कोर्ट ने तीन एफआईआर की कार्रवाई पर रोक लगाई थी।

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