अपने विवेक को सदैव जागृत रखें: श्री हरि चैतन्य महाप्रभु
काशीपुर। स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने आज गढ़ीनेगी स्थित श्री हरिकृपा धाम आश्रम में उपस्थित विशाल समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि आपकी कोई भी क्रिया, चेष्टा, व्यवहार या कर्म ऐसा न हो जाए जिसे देखकर कोई उंगली उठाये। आपके जीवन में वांछित परिवर्तन भी आना चाहिए। अपनी गलतियों और बुराइयों को समझें व दूर करें।
उन्होंने कहा कि दूसरों पर मिथ्या दोषारोपण से कहीं बेहतर है कि स्वयं आत्म अन्वेषण करें। कई बार हम स्वयं गलतियां करते हैं, स्वयं अपने हाथों अपने लिए पतन का गड्ढा खोदते हैं व दोष दूसरों को देते हैं। दूसरों में दोष ढूंढने के कारण हमें अपने अंदर दोष होते हुए भी दिखाई नहीं देते। आंखें सबको देखती है पर अपने को नहीं देख पाती। निष्पक्ष, शांत, एकाग्रचित्त होकर अपनी आत्मा की आवाज़ सुनें, तो पता चल जाएगा कि लोग हमें क्या समझते हैं, हमारा मन क्या समझता है, परन्तु वास्तव में हम हैं क्या? किसी को दोष क्यों देते हो अपनी अनेक आंतरिक दुर्बलताएँ ही विनाश का कारण बनती है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को अपने जीवन को श्रेष्ठ व मर्यादित बनाने के लिए जहाँ से अच्छाई मिले वहाँ से ग्रहण करके अपने जीवन को समाज के लिए कल्याणकारी श्रेष्ठ व मर्यादित बनाए। संसार में किसी को भी, कभी भी, किसी प्रकार से भी दुख, भय या कलेश नहीं पहुँचना चाहिए। उन्होंने कहा कि सेवा धर्म इतना सरल नहीं है जितना हमने इसे समझा है यह सबसे कठिन है। परंतु असंभव नहीं है। यदि हम प्रभु स्मरण करते हुए प्रयास करें तो इस असंभव को भी संभव किया जा सकता है। मनुष्य महान है, शक्ति का पुंज है सब कुछ कर सकता है, लेकिन सोया है, परेशान है उसके जागते ही सब कुछ जग जाएगा।