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हरेला पर्व पर दुर्गा कालौनी में आयोजित हुआ कार्यक्रम

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काशीपुर। लोक पर्व हरेला को लेकर कुमाऊं में खासा उत्साह है। परंपरा के अनुसार शनिवार को महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में सजकर मंगल गीत गाकर हरेला बोया। काशीपुर में बसे चम्पावत, अल्मोड़ा, बागेश्वर और पिथौरागढ़ आदि मूल के परिवारों की महिलाओं ने हरेला बोने की परंपरा का बखूबी निर्वहन किया। गिरीताल क्षेत्रांतर्गत दुर्गा कालौनी में श्रीकृष्ण प्रणामी मंदिर के समीप आयोजित कार्यक्रम में आयोजक हेमलता विष्ट ने बताया कि उत्तराखंड के लोगों में श्रावण मास में मनाए जाने वाले लोक पर्व हरेला को लेकर कई मान्यताएं हैं। श्रावण मास शुरू होने से दस या नौ दिन पहले पांच या सात प्रकार के अनाज (जौं, धान, गहत, मक्का, गेहूं, उड़द, सरसों, भट) के बीज को रिंगाल से बनी एक टोकरी में मिट्टी डाल के बोया जाता है। इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और प्रतिदिन सुबह पानी से सींचा जाता है। हरेला से एक दिन पहले हरेले की गुढ़ाई होती है और हरेले के दिन इसे काटा जाता है। घरों में बोया हुआ हरेला जितना बड़ा होगा, कृषि में उतना ही फायदा देखने को मिलेगा। वैसे तो हरेला हर घर में बोया जाता है लेकिन कुछ गांव में सामूहिक रूप से ग्राम देवता के मंदिर में भी हरेला बोया जाता है।
इस दिन घरों में तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनते हैं। वैसे हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है। पहला–चैत्र मास, दूसरा–सावन मास और तीसरा–आश्विन (क्वार) मास में। हरेला उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में प्रमुखता से मनाया जाता है। इस दिन हरेला की शुभकामनाएं देकर बुजुर्ग बच्चों को आशीर्वाद देते हैं। इस दिन हम लोग पौधे लगाते हैं। आयोजन के दौरान पौधारोपण करने के साथ ही मंगल गीत गाये गये। इस अवसर पर भावना खनूलिया, चन्द्रा मठपाल, अनिता डुंगराकोटि, गीता रावत, निशा अधिकारी, संगीता मंझेड़ा, आशा जोशी, मीनाक्षी भारद्वाज, हेमलता रावत, डॉली, तुलसी शर्मा आदि मुख्यत: उपस्थित रहीं।

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