Aaj Ki Kiran

मज़दूर सहयोग केंद्र उत्तराखंड का सम्मेलन आज

Spread the love


रुद्रपुर,।मज़दूर सहयोग केंद्र, उत्तराखंड के सम्मेलन के ठीक पूर्व लंबे संघर्षों के बाद जनविरोधी तीन कृषि क़ानूनों को वापस लेने की केंद्र सरकार के निर्णय का मज़दूर सहयोग केंद्र (एमएसके) ने स्वागत किया है और इस ऐतिहासिक जीत पर संघर्षरत किसानों को बधाई दी है। एमएसके ने बताया कि मज़दूर सहयोग केंद्र, उत्तराखंड का सम्मेलन आज 1 बजे से दुर्गा मंदिर परिसर, श्याम टकीज के सामने, रवींद्र नगर, रुद्रपुर में आयोजित होगा।
किसान संघर्ष की ऐतिहासिक जीत
एमएसके की केन्द्रीय समिति द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा कि किसानों की यह ऐतिहासिक जीत इस बात का सबूत है कि लोगों का जुझारू और संगठित संघर्ष कठोर से कठोर दुश्मन को झुका सकता है। देशी विदेशी पूँजी द्वारा भारत की जनता, कृषि और प्राकृतिक संसाधनों की लूट पर किसान संघर्ष द्वारा लगाई लगाम पूरे देश की मेहनतकश जनता की जीत है।
एमएसके ने कहा कि संघर्षशील किसानों को जाति, धर्म व क्षेत्र के आधार पर बांटने की सारी कोशिशों के बावजूद जनता की एकता भारत के इतिहास में एक मिसाल है और नफ़रत और बटवारे की राजनीति करने वाली भाजपा-आरएसएस जैसी फासीवादी ताकतों की एक बड़ी हार है। खुशियाँ मनाने के साथ यह याद रखना है कि एमएसपी-पीडीएस की सुनिश्चितता व कानूनों को संसद से रद्द किये जाने और कृषि संकट का वास्तविक समाधान अभी बाकी है।
एमएसके ने आन्दोलन को इस पड़ाव तक लाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा को क्रांतिकारी अभिनंदन और आभार जताया और आन्दोलन के दौरान शहीद हुए सभी किसानों को क्रांतिकारी सलाम और नमन पेश किया। कहा कि परिश्रम और समझदारी से व्यापक एकता और कठिन से कठिन परिस्थितियों में इसे आगे बढ़ाते हुए आन्दोलन को परिपक्व नेतृत्व दिया।
मज़दूर सहयोग केंद्र, उत्तराखंड का सम्मेलन आज
एमएसके ने बताया कि मज़दूर सहयोग केंद्र, उत्तराखंड का सम्मेलन एक ऐसे समय में हो रहा है जब मेहनतकश मज़दूर आबादी विकट संकटों के दौर से गुजर रही है और मज़दूर विरोधी नीतियों की बमबारी से बेहाल है। लंबे संघर्षों के दौरान हासिल श्रम कानूनी अधिकारों को छीन कर मज़दूरों को बंधुआ बनाने वाली चार श्रम संहिताएं लागू होने जा रही हैं। जनता के खून पसीने से खड़े सरकारी-सार्वजनिक संपत्तियों-उद्योगों को देशी-विदेशी मुनाफाखोर कंपनियों को लुटाने का धंधा तेज हो चुका है। महंगाई बेलगाम है और बेरोजगारी की भयावह स्थिति है। जाति-धर्म के नाम पर जनता को बुरी तरह बाँटकर मुनाफे की लूट तेज हो गयी है। संगठित असंगठित हर क्षेत्र में मज़दूर शोषण और दमन की चक्की में पिस रहे हैं।
बीते डेढ़ साल के दौरान कोरना महामारी ने जहाँ आम मेहनतकश के दुख, कष्ट और तकलीफों को बेइंतहा बढ़ा दिया, वहीं मोदी सरकार ने इस आपदा को पूँजीपतियों के अवसर में बदल दिया है, और मुनाफे की अंधी लूट ने देश और समाज को एक कठिन चुनौतीपूर्ण स्थिति में खड़ा कर दिया है। इन चुनौतियों का सामना करते हुए देश के किसानों ने जनविरोधी तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ एक ऐतिहासिक जीत हासिल की है, वहीं मज़दूर आबादी भी हक़ के तमाम छोटे-छोटे संघर्षों में लगी हुई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *