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अटूट आस्था का केंद्र भगवान शिव का पौराणिक झाड़ी मंदिर जहां होती है हर मुराद पूरी

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सितारगंज। बाराकोली रेंज में झाड़ खंडेश्वर ;झाड़ीद्ध मंदिर लोगों  की
श्रृद्धा और आस्था का प्रमुख केंद्र है। श्रावण मास में देवो के देव महादेव
की पूजा-अर्चना करने के लिए यहां श्रृद्धालुओं को सैलाब उमड़ता है।
महाशिवरात्रि पर्व पर यहां बड़ा मेला भरता है। यहां आसपास व दूरदराज से बड़ी संख्या में श्रृद्धालुजन आकर दर्शन कर शीश झुकाकर सच्चे मन से मन्नते मांगते है, देवा के देव महादेव उनकी सभी मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं। पिछले साल की तरह इस साल भी इसके भव्य मेले का आयोजन नहीं हुआ। सितारगंज-शक्तिफार्म के पास बाराकोली रेंज के जंगल के मध्य स्थित यह मंदिर किसने बनवाया और यह कोई नहीं जानता। करीब पाँच सौ साल पहले ग्वालियर का एक राजा शिकार खेलते हुए जंगल में भटक गया। जब उसे एक शेर दिखाई दिया। उसने बाण मारा तो वह भागकर झाड़ी में घुस गया। राजा ने जब झाड़ी में जाकर देखा तो शेर के बजाय चाँद की चाँदनी सा चमकता शिवलिंग दिखाई दिया। राजा ने शिवलिंग को अपने साथ ले जाने के लिए अनेक जतन किए। खुदवाया तो जमीन में धंस्ता चला गया। जंजीर से बंधवाकर हाथी से खिंचवाया तो ऊपर उठता गया। हार मानकर राजा ने फिर वहीं पास में एक पानी के लिए कुआं बनवाकर अनुष्ठान करवाया। कहते हैं कि अनुष्ठान महाशिवरात्रि के दिन हुआ था। इसलिए जंगल में झाड़ी के नाम से तभी से महाशिवरात्रि पर्व पर मेला लगने लगा। बताते हैं कि अब महज तीन-चार दिन चलने वाला यह मेला यही कोई चालीस साल पहले पन्द्रह ,बीस दिन लगातार चलता था और इसमें रोजमर्रा की
करीब-करीब सभी चीजों के साथ हाथी-घोड़े तक बिकने आते थे। तब जंगल का बादशाह शेर भी मेले में आता था और श्र(ालुओं की भांति परिक्रमा कर शिवलिंग के सम्मुख शीश झुकाते थे। भीड़ के बीच से गुजरने के बाद भी किसी के पास किसी तरह की कोई हरकत नहीं करता था। ग्रामीण बिना किसी डर-भय के जंगल में जहां-तहां डेरा डालकर बनाते खाते थे और कई-कई दिन मेले का लुफ्त उठाते थे। कहते हैं कि तब क्षेत्र में डाकू भी खूब सक्रिय थे। वह जब कहीं डाका डालने जाते थे, तो गंभीर नांद होता था और शिवलिंग से आवाज आती
थी।सावधान हो जाओ डाकू डाका डालने आ रहे हैं इससे परेशान होकर डाकुओ ने शिवलिंग का नुकसान पहुंचाने की खूब कोशिश की और नाकाम होने पर क्षेत्र छोड़कर अन्यंत्र चले गए। कहते हैं कि अपने जमाने के मशहूर सुल्ताना डाकू को इस मंदिर से बड़ा लगाव था। वह इसमें खूब पूजा-अर्चना करता था। लेकिन डाकुओं के बारे में आने वाली आवाज से वह भी बहुत परेशान था। डाका डालने जाते समय आवाज आने से उसका पारा इतना चढ़ गया की बौखला कर एक बार उसने शिवलिंग पर तलवार से प्रहार कर दिए। जिसके बाद शिवलिंग से आवाज आनी  बंद
हो गई और इसी के साथ सुल्तान डाकू गिरफ्तार कर लिया गया।

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