– पीछे बड़ी संख्या में भारतीयों का हुजूम,वीडियो सामने आया
कानपुर। रूस की बमबारी से यूक्रेन में हर तरफ तबाही मची हुई है। जंग के बीच फंसे लोग जान बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। ऐसे मुश्किल वक्त में भारत का तिरंगा झंडा सुरक्षा कवच बना हुआ है। यूक्रेन की सड़कों पर तिरंगा लेकर निकले कानपुर के आरव का एक वीडियो सामने आया है। आरव बमबारी के बीच तिरंगा लहराता हुआ चल रहा है और उसके पीछे एक हजार भारतीयों का हुजूम भी है,जो लगातार आगे बढ़ रहा है।रास्ते में करीब 50 मीटर दूर बम फटाआरव की मां डॉ.मधुरिका ने बताया कि इंडियन एंबेसी ने खारकीव छोडऩे के निर्देश दिया था, जिसके बाद उनका बेटा आरव एक हजार भारतीयों के साथ सबसे आगे इंडियन फ्लैग लेकर बढ़ा। उसके पीछे सभी भारतीय छात्र चले। आरव ने अपनी मां को बताया कि जब वह एस्चिन पैदल जा रहा था, तो रास्ते में करीब 50 मीटर दूर एक बम फटा। इससे कुछ लोगों को हल्की चोटें आईं,लेकिन सभी सुरक्षित हैं। इसके बावजूद बिना डरे सभी आगे बढ़ते रहे।डॉ.मधुरिका ने बताया कि बेटे आरव को रोमानिया और पोलैंड बॉर्डर जाने के लिए बस से 1800 किमी. का सफर तय करना है। बस पहले उन्हें टर्नाेलीव छोड़ेगी। इंडियन एंबेसी ने निर्देश दिया है कि सभी लवीप सिटी पहुंचे। इसके बाद उन्हें रोमानिया या पोलैंड बॉर्डर पहुंचाया जाएगा।कर रहे है वसूलीडॉ.मधुरिका के बेटे आरव और बेटी अक्षरा खार्किव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं। मां ने बताया कि बेटा आरव 4 दिनों से खार्किव से 16 किमी.दूर एस्चिन गांव में फंसा था। खार्किव में फंसे 1 हजार से ज्यादा छात्र 16 किमी. पैदल चलकर एस्चिन पहुंचे थे। वहां 4 दिन तक फंसे रहने के बावजूद इंडियन एबेंसी ने बॉर्डर तक पहुंचाने की कोई व्यवस्था नहीं की। ऐसे में भारतीय एजेंटों ने बस से रोमानिया बॉर्डर तक छोडऩे के 300 से 500 डॉलर तक वसूले। मजबूरी में करीब 700 भारतीय छात्रों ने पैसे दिए। जो नहीं दे पाए, बस वाले उन्हें वहीं छोड़ कर चले गए। पिता विनोद ने बताया कि,बच्चों को तीन दिनों से कुछ खाने को नहीं मिला है। इंडियन एंबेसी से शिकायत की, लेकिन उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए।यूक्रेन नागरिक ने छात्र को मारी गोलीमां ने बताया कि खार्किव स्टेशन पर आरव ने बहन अक्षरा को लड़कर ट्रेन में बैठाया। उसके साथ 4 भारतीय छात्राएं और भी थीं। एक भारतीय छात्र को उसके सामने स्टेशन पर यूक्रेनियन ने पैर में गोली मार दी। इसके बाद सभी भारतीय पीछे हट गए। सिर्फ 5 छात्राएं ही ट्रेन में बैठकर रोमानिया बॉर्डर के लिए निकल सकीं।