आधारकार्ड, बैंक पासबुक, पैन कार्ड हैं, लेकिन हो चुकी है मौत
बेतिया। मैं जिंदा हूं३मैं जिंदा हूं। 53 साल की एक महिला पिछले 35 साल से चीख-चीख कर कह रही है कि वह जिंदा हैं, लेकिन सरकारी कागजात में उसकी मौत हो चुकी है। कागजों में जिंदा रहने की जंग वह 19 वर्ष की उम्र से लड़ रही है। दरअसल महिला को किसी और ने नहीं बल्कि उसके संतानों ने ही कागजों में जिंदा दफन कर दिया है। यह कहानी जिले के चनपटिया के गिद्धा गांव की रहने वाली बुचुन देवी की है, जो पिछले चार साल से दर- दर की ठोकर खाकर खुद के जिंदा होने का सबूत इकट्ठा कर रही है। दरअसल बुचनी देवी की शादी गिद्धा गांव के शिवपूजन महतो के साथ हुई था। शिवपूजन ने अपने बेटे की गलत संगत से तंग आकर 18 कट्ठा 19 धुर जमीन बुचुन देवी के नाम कर दी। इसी जमीन के लालच में बेटे सुखदेव प्रसाद ने गलत तरीके से एक जनवरी 1987 की तारिख में अपनी मां का मृत्यु प्रमाण पत्र चनपटिया प्रखंड कार्यालय से बना लिया और चार साल पहले अपनी मां को घर से निकाल दिया। तब से महिला घोघा गांव स्थित अपने मायके में ही रह रही है। महिला ने आरोप लगाया है कि उसके बच्चे और पति बार- बार मारपीट कर भगा देते हैं। इस बीच महिला ने कई बार बीडीओ से लेकर सीओ तक के पास खुद को जिंदा बताने का प्रयास किया लेकिन उसे वहां से यह कहकर भगा दिया जाता है कि तुम मर गई हो। महिला के पास जिंदा होने के तमाम सबूत मौजुद हैं, मसलन आधारकार्ड, बैंक पासबुक, पैन कार्ड और तो और बुचुन देवी को कोविड-19 संक्रमण का टीका भी 17 जुलाई 2021 को लग चुका है। इन सारे दस्तावेजों के साथ पीड़िता खुद को जिंदा होने का प्रमाण दे रही है, लेकिन सरकारी सिस्टम उसे जिंदा मानने को तैयार नहीं है। हालांकि गिद्धा पंचायत की पूर्व मुखिया कौशल्या देवी ने शिवपूजन महतो की पत्नी बुचुन देवी को जिंदा मानते हुए एक प्रमाण पत्र 9 मार्च 2019 को जारी किया था। इसमें कहा गया था कि वह जिंदा है और उसकी मौत नहीं हुई है। इस मामले में चनपटिया प्रखंड के तत्कालीन बीडीओ, पंचायत सचिव सहित अन्य सरकारी कर्मियो की भूमिका संदिग्ध है। क्योंकि बगैर सत्यापन के ही 1987 का डेट देकर मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया। बहरहाल यह पूरा मामला धोखाधड़ी का है, जहां एक बेटे ने अपनी ही मां को धोखे से कागजों में मार दिया है। इस मामले में प्रखंड कार्यालय से लेकर पंचायत सचिव की भूमिका संदिग्ध नजर आ रही है।