काशीपुर। विकास के लिए पूरा काशीपुर क्षेत्र तरस रहा है लेकिन कोई भी ऐसा जनप्रतिनिधि नहीं है, जो कि काशीपुर का विकास करा सके, और यह उपेक्षा का सिलसिला कई दशकों से चल रहा है। सन् 1995 में यूपी की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने काशीपुर की उपेक्षा कर रूद्रपुर को जिला घोषित किया, जबकि काशीपुर सभी मानकों को पूरा कर रहा था और आज तक जिले के लिए संघर्ष कर रहा है। काशीपुर जिला न बन सके इसके भी पूरे प्रयास किये गये थे। इसका क्षेत्रफल कम करते हुए उसे जसपुर व बाजपुर तहसील में शामिल कर दिया गया। अब हालत ये है कि ढेला नदी का पुल पार करते ही जसपुर की सीमा प्रारंभ हो जाती है और कुण्डेश्वरी व महुआखेड़ागंज का क्षेत्र बाजपुर में शामिल कर दिया गया। काशीपुर के आसपास सभी नगरों का विकास हो रहा है, लेकिन काशीपुर की लगातार उपेक्षा की जा रही है। यहां के विधायक रोडवेज बस स्टैण्ड को शिफ्ट कराने के लिए वर्षों तक प्रयास करते रहे लेकिन वह आज तक न तो वह शिफ्ट हो सका और न ही उसकी नई बिल्डिंग बन सकी और अब इस डिपो को रामनगर से संचालित करने की बात सामने आ रही है। जबकि रामनगर, हल्द्वानी, रूद्रपुर, खटीमा आदि स्थानों पर रोडवेज बस स्टैण्ड या आईएसबीटी की मंजूरी दे दी गयी है या निर्माण चल रहा है। आज हालत यह है कि यहां रोडवेज बस पकड़ने के लिए यात्रियों को जगह-जगह धक्के खाने पड़ रहे हैं। बात रेलवे की करें तो सभी प्रमुख ट्रेनें भी काठगोदाम से संचालित होती हैं। काशीपुर की यहां भी उपेक्षा ही हो रही है। राजधानी देहरादून के लिए वर्षों से ट्रेन चलाने की मांग की जा रही है। यहां से हरिद्वार जाने वाली ट्रेन को देहरादून तक नियमित रूप से चलाने की मांग की गयी थी, लेकिन सरकार ने उस ट्रेन को देहरादून तक तो नहीं चलाया बल्कि हरिद्वार के लिए भी जाने वाली ट्रेन को स्थाई रूप से बंद कर दिया। सीतापुर आई हॉस्पिटल की बिल्डिंग पूरी तरह जर्जर हो चुकी है। स्पोर्ट्स स्टेडियम की भी हालत खस्ता है। तहसील, कोतवाली, एसडीएम कार्यालय आदि की भी बिल्ंिडग भी बहुत पुरानी हो चुकी हैं। सरकार द्वारा काशीपुर को दर्जा तो महानगर का दे दिया गया है, लेकिन यहां स्वास्थ्य सुविधाआंे का बुरा हाल है। नगर के पर्यटक स्थल गिरीताल व द्रोणासागर का भी हाल बुरा है। कई बार इनका सौंदर्यकरण करने की बात चलती है लेकिन होता कुछ भी नहीं। तेरह जिले तेरह डेस्टीनेशन के तहत जनपद उधम सिंह नगर में गूलरभोज जलाशय व काशीपुर में द्रोणासागर को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए चुना गया था। गूलरभोज जलाशय को तो विकसित कर दिया गया लेकिन यहां द्रोणासागर पर कुछ भी नहीं हुआ। इससे साफ पता चलता है कि यहां कोई भी जनप्रतिनिधि दमदार नहीं है।