नई दिल्ली। जालौन के 1400 साल पुराने शिव मंदिर की महिमा अद्भुत है। यहां हर साल शिवलिंग चावल के दाने के बराबर बढ जाता है। जनपद जालौन की माधवगढ़ तहसील के अंतर्गत ग्राम सरावन में स्थित.शिवमंदिर की अनेकों कथाएं स्थानीय रूप से प्रचलित है इन कथाओं का वर्णन बुंदेली संस्कृति में अतुलनीय है। सावन के माह व महाशिवरात्रि के दिनमहाकाल की असीम अनुकम्पा पाने की अभिलाषा लिए बड़ी संख्या में आसपास और दूर-दूर से भक्त आते हैं।श्वेतवर्ण शिवलिंग रूप मे मंदिर में विराजमान होने के कारण भूरेश्वर महादेव मंदिर के रूप में विख्यात यह मंदिर स्थानीय लोगों की अटूट आस्था और विश्वास का बड़ा केंद्र है। स्थानीय लोग भूरेश्वर महादेव की सविस्तार वर्णन करते हुए बताते हैं कि यहां शिवलिंग हर साल एक चावल भर बढ़ता है, यही वजह है कि शिवलिंग की ऊंचाई 96 सेंटीमीटर हो गई है। सावन मास में और शिवरात्रि के पर्व पर लाखों श्रद्धालु यहां माथा टेक कर खुद को धन्य मानते हैं। कैलाशपति का भूरेश्वर मन्दिर लगभग 1400 वर्ष पुराना है और रियासत के राजा श्रवन देव द्वारा बनाया गया है। राजा श्रवनदेव एकबार हस्तिनापुर गए थे, वहां उन्हें भगवान शिव ने स्वप्न में.आकर शिवलिंग स्थापित करने को कहा। हस्तिनापुर से लौटते हुए वहां से राजा एक छोटे आकार का शिवलिंग लेकर आए थे, और गांव के पास ही एक जगह रख दिया।राजा मूर्ति को किसी पुनीत स्थान पर स्थापित करना चाहते थे लेकिनअनेक प्रयासों के बावजूद भी राजा तथा अन्य लोग इस शिवलिंग को तिल भर भूमि से अलग नहीं कर पाए और आखिरकार राजा को शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित कराना पड़ा। तभी से यह शिवलिंग इसी जगह स्थापित हैं और मंदिर बनवाया। राजा श्रवन के नाम पर गांव का नाम पुराने कागजों में दर्ज है लेकिन भाषा के धारा प्रवाह के कारण ‘श्रवणश् शब्द गांव की बोली में बोलते-बोलते ठेठ होकर ‘सरावनश् शब्द बन गया और गांव का नाम सरावन पड़ा। मंदिर के मुख्य द्वार पूर्व, निकास दक्षिण व आगमन उत्तर की ओर है, छत 6 खंभों पर है । यहां शिवलिंग के विषय में बताया जाता है कि सुबह, दोपहर और शाम यह शिवलिंग अलग-अलग रूप में दिखाई देता है। राजा श्रवन देव ने मन्दिर बनवाया जिसकी ऊंचाई लगभग 20 फुट है, उसके आगे एक बड़ा सा बरामदा बाद में बनवाया गया, जिसकी लम्बाई 40 फुट व चौड़ाई 30 फुट है जिसके अंदर छह खम्भे भी हैं। वहां पर काफी बड़ा मैदान है अब पानी के लिए नल की सुविधा भी है पेड़ भी है वहां पर एक पीपल का पेड़ है जो लगभग 800 साल पुराना है कालांतर में इसके बीच से एक नीम का पेड़ भी निकल आया और इस कारण लोग इसे हरिशंकरी के नाम से पुकारने लगे।