नई दिल्ली । देश में घटिया दवाओं का बड़े स्तर पर कारोबार संचालित होता है सरकार ने इस समस्या के निदान के लिए क्यूआर कोड प्रणाली को लागू करने की तैयारी कर ली है। अब ग्राहक जल्द ही यह जांच कर पाएंगे कि जिस दवा को उन्होंने खरीदा है, वह सुरक्षित है और नकली तो नहीं है। सरकार ने नकली और घटिया दवाओं के उपयोग को रोकने और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सबसे अधिक बिकने वाली दवाओं के लिए ‘ट्रैक एंड ट्रेस’ व्यवस्था शुरू करने की योजना बनाई है। इसके तहत पहले चरण में दवा कंपनियां सबसे अधिक बिकने वाली 300 दवाओं की प्राथमिक उत्पाद पैकेजिंग लेबल पर बारकोड या क्यूआर कोड प्रिंट करेंगी या चिपकाएंगी। प्राथमिक उत्पाद पैकेजिंग में बोतल, कैन, जार या ट्यूब शामिल हैं, जिसमें बिक्री के लिए दवाएं होती हैं।
एक अंग्रेजी अखबार की खबर के मुताबिक इसमें 100 रुपये प्रति स्ट्रिप से अधिक की एमआरपी वाली बड़ी संख्या में बिकने वाली एंटीबायोटिक्स, कार्डिएक, दर्द निवारक गोलियां और एंटी-एलर्जी दवाओं के शामिल होने की उम्मीद है। इस कदम का संकल्प हालांकि एक दशक पहले लिया गया था। लेकिन घरेलू फार्मा उद्योग में जरूरी तैयारियों की कमी के कारण इसे रोक दिया गया था। यहां तक कि निर्यात के लिए भी ट्रैक एंड ट्रेस मैकेनिज्म को अगले साल अप्रैल तक के लिए टाल दिया गया है। जबकि पिछले कुछ साल में बाजार में नकली और घटिया दवाओं के कई मामले सामने आए हैं।
हाल ही में सामने आए एक बड़े मामले में तेलंगाना ड्रग्स अथॉरिटी ने थायरॉयड की दवा थायरोनॉर्म की गुणवत्ता को खराब पाया। उसे बनाने वाली दवा कंपनी एबॉट ने कहा कि उसकी थायरॉयड की दवा थायरोनॉर्म नकली थी। जबकि एक अन्य उदाहरण में बद्दी में ग्लेनमार्क की ब्लड प्रेशर की गोली टेल्मा-एच के नकली ड्रग रैकेट का भंडाफोड़ किया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में लगभग 10फीसदी मेडिकल प्रोडक्ट घटिया या नकली होते हैं। हालांकि ये दुनिया के हर इलाके में पाए जा सकते हैं।
एक बार सरकार के उपाय और जरूरी सॉफ्टवेयर लागू होने के बाद उपभोक्ता मंत्रालय के एक पोर्टल (वेबसाइट) पर यूनिक आईडी कोड फीड करके कंज्यूमर दवा की असलियत की जांच कर सकेंगे। वे बाद में इसे मोबाइल फोन या टेक्स्ट मैसेज के जरिए भी ट्रैक कर सकेंगे। सूत्रों ने कहा कि पूरे दवा उद्योग के लिए सिंगल बारकोड देनेवाली एक केंद्रीय डेटाबेस एजेंसी स्थापित करने सहित कई विकल्पों का अध्ययन किया जा रहा है। इसे लागू करने में कुछ हफ्ते लग सकते हैं।