मेरे रक्त का हर एक बूंद राष्ट्र के लिए समर्पितः डा. पण्डया
शांतिकुंज में 120 फीट ऊंचा राष्ट्रीय ध्वज का लोकार्पण
हरिद्वार। उत्तराखण्ड के राज्यपाल ले. ज. (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह ने राज्यपाल नियुक्त होने पर अपनी पहली हरिद्वार यात्र शांतिकुंज से प्रारंभ किया। इस मौके पर उन्होंने शांतिकुंज में स्थापित 120 फीट ऊंचे राष्ट्रीय ध्वज का लोकार्पण किया। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय परिसर में स्थित शौर्य दीवार में पुष्पचक्र अर्पित कर वीर सपूतों को श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर आयोजित शांतिकुंज स्थापना की स्वर्ण जयंती व्याख्यान माला में बतौर मुख्य अतिथि राज्यपाल श्री सिंह ने कहा कि मैं नवरात्र के दूसरे दिन युगट्टषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा का आशीर्वाद लेने आया हूं। गायत्री मंत्र हमे अपने अंतर आत्मा से जोड़ता है। शांतिकुंज एवं देसंविवि आकर मुझे गहरी शांति का अनुभव हो रहा है। राज्यपाल ने कहा कि देसंविवि ट्टषि परंम्परा का निर्वहन कर रही है जो भारतीय संस्कृति के गौरव गाथा, शौर्य, पराक्रम, साहस, समरसता की प्रेरणा को जन-जन तक पहुंचाने में जुटा है। कहा कि आचार्य श्री ने सभ्य एवं सुसंकृत समाज का जो स्वप्न देखा था, उसे पूरा करने के लिए अखिल विश्व गायत्री परिवार एवं देसंविवि संकल्पित है। राज्यपाल ने कहा कि राष्ट्र ध्वज देशभक्ति, राष्ट्रीयता के साथ हम सभी भारतीय को एक डोर में बांधे हुए है। हम अपना सब कुछ राष्ट्र, समाज, संस्कृत और संस्कृति के लिए समर्पित कर दें। हम सबके लिए राष्ट्र सर्वोपरी है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की सुरक्षा में प्राणों की आहुति हो जाए, तो यह गर्व की बात है। हर सैनिक की अंतिम अभिलाषा होती है कि जब प्राण तन से निकले तो शरीर तिरंगा में लिपटा हो। राज्यपाल के उद्बोधन से सैनिकों जैसा जोश, उत्साह एवं उमंग से देसंविवि के मृत्युंजय सभागार गुंज उठा। उन्होंने भारत एवं भारतीयता, संस्कृत एवं संस्कृति के उत्थान के लिए विद्यार्थियों को प्रेरित किया। राज्यपाल ने अपना उद्बोधन ओम के उच्चारण के साथ प्रारंभ किया और समापन भी। व्याख्यानमाला कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्डया ने कहा कि यह उत्तराखंड का सौभाग्य है कि देवभूमि में पहली बार सेना के सेवानिवृत एक उच्चाधिकारी को राज्यपाल की जिम्मेदारी मिली है। उन्होंने कहा कि आजादी के मतवाले श्रीराम मत्त एक प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी रहे, तब उन्होंने तिरंगा की आन, बान, शान के लिए अंग्रेजों से लड़े। संत, सुधारक एवं शहीद को अवतारों की श्रेणी में आता है। उन्होंने कहा कि मेरे शरीर के रक्त का हर एक बूंद राष्ट्र के लिए समर्पित है। इस मौके पर अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्डया ने राज्यपाल का विवि का प्रतीक चिह्न, गायत्री महामंत्र का चादर एवं युग साहित्य भेंटकर सम्मानित किया। इससे पूर्व देसंविवि के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्डया ने कार्यक्रम की रूपेरखा पर विस्तार से जानकारी दी। इस मौके पर राज्यपाल एवं कुलाधिपति ने देसंविवि की ई न्यूज लेटर रेनासा के नवीनतम अंक का विमोचन किया। इस अवसर पर कुलपति शरद पारधी, कुलसचिव बलदाऊ देवांगन सहित अनेक प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहे।