
नई दिल्ली । यमुना ब्रिज या लोहे का पुल। दिल्ली इससे प्यार करती है। न जाने दिल्ली की कितनी पीढ़ियों ने इसके आर-पार रेल या फिर नीचे बस, कार, स्कूटर, टांगों या फिर किसी अन्य वाहन पर सफर किया है। रेलवे की भाषा में इसका नंबर 249 है। बेशक, इसे दिल्ली के सबसे बुलंद लैंडमार्ड में से एक माना जा सकता है। अब इसके ठीक साथ ही रेलवे ने नए पुल का निर्माण कर दिया है। उम्मीद है कि नया पुल कुछ समय के बाद ट्रैफिक के लिए खुल जाएगा। पुराने पुल ने दिल्ली को कई बार बनते-बदलते हुए देखा। नए पुल के बनने के बाद कह सकते हैं यह आराम करेगा। इसने 150 सालों से भी अधिक समय तक दिल्ली की सेवा की। दिल्ली रहेगी इसकी एहसानमंद। जब रेल इसके ऊपर से गुजरती है, तब जिस तरह की आवाजें आती हैं, वो कहीं न कहीं डराती हैं। जब रेल पुल के ऊपर से गुजर रही होती है तब कई मुसाफिर इसके अंदर सिक्के गिरा रहे होते हैं। लोहे के पुल का निर्माण 1863 में चालू हुआ था और यह 1866 में बनकर तैयार हो गया। ये जब बनने लगा उससे पांच साल पहले ही मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को रंगून कैद में भेज दिया गया था। 850 मीटर लंबे पुल को हैरिटेज पुल का दर्जा प्राप्त है। ये शुरू में सिंगल लाइन था। इसे 1933 में डबल लाइन किया गया था। तो आप कह सकते हैं कि इसे डबल लाइन का हुए भी 80 साल हो गए हैं। यमुना नदी पर बना लोहे के पुल 12 विशाल स्तंभों पर खड़ा रहा। जब देश के अलग-अलग हिस्सों से पुलों के गिरने की खबरें आना अब सामान्य बात हो गई हो तब हमारा लोहे का पुल चट्टान की तरह खड़ा रहा। इसके ऊपर से गुजरते हुए उन तमाम अनाम इंजीनियरों और श्रमिकों को दिल से धन्यवाद करने का मन करता है जिन्होंने इस खड़ा था।