0- कोरोनाकाल में उजड़ी रौनक को वापस लाने में जुटा चिडिय़ाघर प्रशासन
लखनऊ। उत्तरप्रदेश के लखनऊ के नवाब गाजीउद्दीन हैदर और वाजिद अली शाह जैसे शासकों ने लखनऊ शहर के नागरिकों को दुनिया के हर अजूबे से परिचित कराने का जो सपना देखा था वह एक तरह से दुनिया के पहले चिडिय़ाघर के रूप में लखनऊ की किस्मत में आया और बनारसी बेगम के नाम पर इसे बनारसी बाग का नाम दिया गया। आज़ादी के बाद अवध के लोकप्रिय नवाबों की यह अनूठी विरासत संभालने का काम उत्तर प्रदेश वन विभाग ने अपने कंधो पर लिया लेकिन आज यह नवाबी विरासत सरकारी लापरवाही और भ्रष्टाचार का नमूना बनकर आँसू बहा रही है।
कभी चिडिय़ाघर घूमने आने वालों को जो टिकट 10 पैसे में मिलता था वह अब आठ सौ गुना बढ़कर 80 रूपये का हो गया। मतलब अगर 10 लोगों का एक परिवार चिडिय़ाघर घूमने की इच्छा करता है तो कोरोनाकाल के कठिन दिनों में उसे 800 रूपये जैसी बड़ी रकम गेट के अन्दर दाखिल होने के लिए चुकानी पड़ेगी। फिर अन्दर न पानी मिलेगा न सुलभ प्रसाधन की कोई सुलभ व्यवस्था मिलेगी। यहां घूमने आने वालों ने तरूणमित्र संवाददाता को बताया कि 80 रूपये ये किस बात के ले रहे हैं समझ में नहीं आता।
हालांकि चिडिय़ाघर पहुंचने पर कई स्थानों पर निमार्ण कार्य होता नजऱ आया। पूछने पर पता चला की महीने भर से बच्चों को पूरा चिडिय़ाघर घूमाने वाली सरकारी ट्रेन महीने भर से बंद पड़ी है,तो पटरियों को ठीक करने और स्टेशन के रंग रोगन की तैयारियां चल रही है। चिडिय़ाघर के जि़म्मेदार अधिकारी और कर्मचारी हर सवाल के जवाब में कोरोनाकाल में हुए नुकसान का रोना रोते हैं। सवाल यह उठता है कि जब कोरोना लॉकडाउन में ढील के बाद लखनऊ के लोकबाग इतने महंगे प्रवेश टिकट की परवाह न करते हुए भी चिडिय़ाघर के सुने पड़े पार्कों को दोबारा रौनक देने लगे हैं तो इस समय मरम्मत और निमार्ण कराने का क्या मतलब है। यह काम तब क्यों नहीं किया गया जब कोरोनाकाल में चिडिय़ाघर पूरी तरह खाली पड़ा था। बहरहाल तरूणमित्र संवाददाता को चिडिय़ाघर के भीतर तमाम अव्यवस्थाएं नजऱ आयी जिनकी जि़म्मेदारी लेना वाला कोई नहीं है। पीने के पानी के लिए बनाए गए सयंत्र गंदगी, कूड़े और झाडिय़ों से ढके हैं और अधिकांश बेकार पड़े हैं। इतने बड़े चिडिय़ाघर में घूमने के लिए आने वालों को केवल दो सुलभ गृहों के भरोसे पर छोड़ दिया गया बाकी बेकार हालत में मौजूद हैं।
मुख्यमंत्री योगी के आदेश पर वन विभाग द्वारा ढोल पीटकर शुरू की गई रक्षा बंधन योजना का बोर्ड वन विभाग के ही इस संस्थान में किसी पुराने पेड़ के आस-पास नजऱ नहीं आया। बच्चों को दूध पिलाने वाली माताओं के लिए बहुप्रचारित बेबी केयर सेंटिग प्लेस के बीतर झाडू पंजे और दूसरे सफाई उपकरणों का ढ़ेर जमा है।इससे यह पता चलता है कि लोगों की कितनी कम संख्या अब चिडिय़ाघर का रूख कर रही हैं।
*नये साल में दिखेगी रौनक*
लेकिन वन विभाग के अधिकारी आशावादी हैं टिकट का दाम कम करने और सुविधाओं को बढ़ायें जाने की बात तो वे अपनी हैसियत से बाहर मानते हैं लेकिन उनका कहना कि नये रंग रोगन के साथ बच्चे की ट्रेन को दोबारा चलाये जाने पर तेजी से काम चल रहा है और पीने के पानी के स्टैण्ड सुधारने और सुलभ प्रसाधनों को भी चाक-चौबंद कराने की प्रक्रिया पूरी गाति पर है। नये साल में आपको चिडिय़ाघर पूरी तरह बदला हुआ और ज्यादा खूबसूरत नजऱ आएगा।