काशीपुर। आशा वर्करों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा और न्यूनतम 21 हजार वेतन लागू करने, जब तक मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता तब तक आशाओं को भी अन्य स्कीम वर्कर्स की तरह मासिक मानदेय फिक्स किया करने, सभी आशाओं को सेवानिवृत्त होने पर पेंशन का प्रावधान करने, दुर्घटना और स्वास्थ्य बीमा करने, कोविड कार्य में लगी सभी आशा वर्करों कोरोना ड्यूटी की शुरुआत से 10 हजार रू० मासिक कोरोना-भत्ता भुगतान करने, अस्पतालों में आशाओं के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करने, आशाओं के सभी भुगतान समय से करने समेत बारह सूत्रीय मांगों और आशाओं की समस्याओं का समाधान करने के लिए चल रही राज्यव्यापी बेमियादी हड़ताल के तहत नगर व ग्रामीण क्षेत्र की आशा वर्कर्स ने ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के बैनर आज भी धरना जारी रखा।
इस अवसर पर उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन द्वारा जारी बयान में कहा गया कि, “गर्मी, जाड़ा, बरसात हर मौसम में अपनी सुरक्षा की परवाह किये बिना आशाएँ स्वास्थ्य विभाग के कार्यों में जुटी रहती हैं। कोरोना के समय जब सब लोग घरों में कैद थे आशाओं ने जागरूकता का काम किया। होना तो यह चाहिये था कि आशाओं को इसका श्रेय देते हुए मासिक वेतन दिया जाता लेकिन इसके बजाय सरकार की उदासीनता और गलत नीतियों के चलते आशाओं को हड़ताल पर विवश होना पड़ा है। यह सरकार की नाकामी है इसलिए सरकार को तत्काल आशाओं की माँगों को मानते हुए उनको मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा देने की बात मान लेनी चाहिए।”
आशा नेताओं ने कहा कि, जिस सरकार का काम शोषण से रक्षा का होना चाहिये वही सरकार खुद आशाओं के श्रम का लगातार कर रही है, यह बेहद शर्मनाक है। इसके खिलाफ पूरे राज्य की आशाएँ एक साथ आंदोलन में हैं और इस बार आरपार की लड़ाई लड़ी जायेगी। अपने हक और सम्मान की लड़ाई लड़ रही आशाएँ एकता और संघर्ष के बल पर अवश्य जीतेंगी। राज्य के मुख्यमंत्री तत्काल आशाओं की मासिक वेतन की मांग को पूरा करें अन्यथा हड़ताल जारी रहेगी।